Mene kabhi ijahaar nhi kiya..
तुम्हे पता है कभी कभी तुम्हारी बहुत याद आती है…
मगर मेने कभी इज़हार नहीं किया…
रात के अँधेरे में,
सुबह की ठंडी हवाओ में…
में तुम्हे हर जगह महसूस करता हूँ…
मगर मेने कभी इज़हार नहीं किया…
क्योकि रात के अँधेरे में,
मेरी महोब्बत दफ़न तो जाती है…
और सुबह की हवाओ में तुम कही घूम हो जाते हो…
मेरा तुम्हारा रिश्ता या शायद… सिर्फ मेरा रिश्ता,
क्यूँकि तुमने तो इसे कभी रिश्ता समझा ही नहीं…
और अगर समझते तो शायद हम कभी इतने दूर होते ही नहीं,
लेकिन चलो ठीक है…
जो तुमने किया वो तुम्हारा फैसला था…
और जो हम कर रहे है तुमसे पागलो वाला प्यार,
वो हमारी महोब्बत है…
दिल माफ तो नहीं करेगा तुम्हे कभी,
तुम्हारी गलतियों के लिए,
मगर क्या करू…
मेरी पहली और आखरी महोब्बत तो तुम ही रहोगे…
मगर मेने कभी इज़हार नहीं किया…!
Mene kabhi ijahaar nhi kiya…