Jhuki hui najaro ko tum najaakat likh dena…
क्या खूब लिखा है किसी ने…
झुकी हुई नजरो को तुम नजाकत लिख देना,
मेरी ख़ामोशी को दौर – ऐ क़यामत लिख देना…
रोता है दिल जिनको आज भी याद करके,
मेरे प्यार की उसे तुम अमानत लिख देना…
दर्द को बयां करुँ जब में मुस्कुराते हुए,
उसी हसी को तुम खुदा की इनायत लिख देना…
जिस दिन आ जाएगी तेरी कलम में स्याही,
फ़रियाद में तुम मेरी शिकायत लिख देना…
राह चलते चलते यूँ झुक जाए साथ तो,
मेरी बेवफाई को तुम मेरी शराफ़त लिख देना…
ख़ुशी के मारे बह जाएँ अश्क़ इन आँखों से,
तो इन अदाओं को तुम मेरी आदत लिख देना…
अगर महोब्बत में बन गया मुजरिम में तेरा,
अपने लबो से तुम मेरी जमानत लिख देना…
तेरे इश्क़ के मंदिर में एक पुजारी हूँ मैं,
मेरी महोब्बत का नाम तुम इबादत लिख देना…
Jhuki hui najaro ko tum najaakat likh dena,